एक रिपोर्ट के मुताबिक़ पूरी दुनिया में आधी आबादी सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रही हैं जबकि भारत में इस समय 116.1 करोड़ लोगों के पास मोबाइल हैं, यानी देश की बहुत बड़ी आबादी सोशल मीडिया का उपयोग कर रही हैं. जिससे उसकी ताक़त का अंदाजा लगाया जा सकता हैं. इस दौरान कई न्यूज़ पोर्टल ने सोशल मीडिया का इस्तेमाल सामाजिक सरोकार और लोगों तक सच्ची ख़बर पहुंचाने का काम कर रहा हैं और कम वक़्त में ही लोगों के बीच विश्वसनीता बनाया हैं.
हम आपको एक ऐसे ही न्यूज़ पोर्टल के बारे में बता रहे हैं जिसका नाम मिल्लत टाइम्स है, जिसकी शुरुआत की कहानी बहुत दिलचस्प है, फिलहाल इसे यूट्यूब, फेसबुक, इंस्टाग्राम, और ट्विटर समेत कई प्लेटफार्म पर करोड़ो लोग जुड़े हुए हैं. ये हमेशा सत्य और वह ख़बर दिखाने की कोशिश करता हैं जिसे बड़े मीडिया हाउस अपने यहां ज़गह नहीं देते हैं. इनकी बहुत सारी खबरें चलने के बाद बड़े चैनलों ने उसे ज़गह दी हैं. कई मामलों में सरकार और प्रशासन ने खबरों पर संज्ञान ली हैं.
कौन हैं इसके फाउंडर?
चार भाषीय उर्दू, हिन्दी, अंग्रेजी और आसामी में एक साथ न्यूज़ देने वाली मिल्लत टाइम्स के फ़ाउंडर और चीफ़ एडिटर शम्स तबरेज क़ासमी हैं. जिनकी शिक्षा एक मदरसे में हुई हैं. वैसे ये बिहार राज्य से आते हैं.
इसे शुरु करने के पीछे मकसद क्या था?
इस बारे में चीफ़ इडिटर शम्स तबरेज क़ासमी बताते हैं कि मौजूदा समय में लोगों को सच्ची ख़बरें देने का हैं. हमारे बीच बहुत सारी ख़बरें ऐसी होती हैं जो जनसरोकार की होती हैं लेकिन उसे बड़े मीडिया हाउस ज़गह नहीं देती हैं तो हमने छोटी छोटी ख़बरों को सच्चाई के साथ लाने के लिए इसकी शुरुआत की थी जिसमें हम कामयाब हैं.
वह आगे बताते हैं कि साल 2014 के बाद बड़े मीडिया हाउस लोगों के बुनियादी मुद्दों को छोड़कर सिर्फ़ सरकारी कामों के बारे में बता रहा था, मीडिया हाउस की तरफ से इस्लामोफ़ोबिया को बढ़ावा दिया जा रहा है और देश के अल्पसंख्यक विशेष कर मुसलमानों के बारे में फे़क न्यूज़ दिखाकर सामाज में नफ़रत पैदा की जा रही थी. इस्लामिक शिक्षा का ग़लत मतलब निकाल कर हिन्दू-मुस्लिम को बांटने की कोशिश की जा रही थीं तो उस समय हमने ये जरुरी समझा कि लोगों को ग़ुमराह करने वाली ख़बरों से बचाया जा सके और उनकी समस्याओं को दुनिया के सामने लाई जाए.
इसकी शुरुआत कब हुई?
मिल्लत टाईम्स की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक़ इसकी शुरुआत साल 2016 में हुई. जब्कि शम्स तबरेज क़ासमी बताते हैं कि बुम्बई में 18 जनवरी 2016 को आँल इंडिया मुस्लिम परर्सल लॅा बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना सैयद मोहम्मद राबे हसनी नदवी के हाथों से हुआ. शरुआती समय में सिर्फ उर्दू में न्यूज़ लोगों तक पहुंचाई जा रही थीं मगर जरुरत को देखते हुए अंग्रेजी, हिन्दी और बंग्ला भाषा में खबरें शुरु की गई.
मिल्लत टाइम्स कब सुर्खियों में आया?
इस बारे शम्स तबरेज क़ासमी बताते हैं कि साल 2018 में उस समय मिल्लत टाईम्स सुर्खी में आया जब बिहार के एक ज़िले में मॅाब लिचिंग हुई थी जिसे किसी मीडिया ने नहीं दिखाई. इस ख़बर को सबसे पहले मिल्लत टाइम्स ने सामने लाया जिससे सरकार हिल गई. उसके बाद बड़े मीडिया हाउस ने इस ख़बर को अपने यहां जगह दी. उसके बाद समय समय पर मिल्लत टाईम्स की खबरें सुखियों में रहीं. कोरोना काॅल के दौरान हमने मजदूरों की परेशानियों को सामने लाया जिसके कारण यूट्ब ने एक सप्ताह के लिए बैन कर दिया साथ ही फ़ेसबुक पेज को इसी कारण वश डिलेट कर दिया हैं. वह इस बारे में कहते हैं कि सरकार ने उनके फे़सबुक को बंद कराया हैं क्योंकि मिल्लत टाइम्स लोगों की समस्याओं को सामने ला रहा था.
सोशल मीडिया पर कितने चाहने वाले हैं?
मिल्लत टाइम्स को पढ़ने और देखने वालों की संख्या प्रतिदिन बढ़ रहा है फ़िलहाल यूट्टूब पर क़रीब एक मीलियन, फ़ेसबुक पर 12 लाख, ट्टीवटर पर क़रीब एक लाख फलोवर्स हैं, इसके अलावा इंस्टराग्राम, कू समेत कई सोशल मीडिया पर करोड़ो लोग जुड़े हुए हैं.
वह कहते हैं कि मौजूदा समय में मीडिया एक करोबार और पैसे का खेल हो गया हैं जिससे सच्ची खबरें लोगों तक नहीं पहुंचती हैं. हमारी हमेशा कोशिश होती हैं सच्ची ख़बरें दिखाने की.
आगे के बारे मेें प्लान किया है
क़ासमी कहते हैं मैं जब मिल्लत टाइम्स को शुरु किया तो हमारे पास संसाधन सीमित था. दिनरात की मेहनत, सच्ची ख़बरें दिखाने के बाद लोगों का प्यार मिला है और आगे कोशिश होगी कि बड़ा मीडिया हाउस तैयार करुं जहां बग़ैर किसी दबाव और रुकावत के लोगों से जुड़ी ख़बरे दिखाई जाए.
लेखक :- अकरम ज़फीर
(लेखक एक आजाद पत्रकार हैं पिछले दिनों ETV भारत और दूसरे मीडिया संस्थानों के साथ जुड़कर काम कर चुके हैं)