Khabar अड्डा: प्रसून को इस्तीफ़ा देना पड़ा है। अभिसार को छुट्टी पर भेजा गया है। आप को एक दर्शक और जनता के रूप में तय करना है। क्या हम ऐसे बुज़दिल इंडिया में रहेंगे जहाँ गिनती के सवाल करने वाले पत्रकार भी बर्दाश्त नहीं किए जा सकते? फिर ये क्या महान लोकतंत्र है? धीरे धीरे आपको सहन करने का अभ्यास कराया जा रहा है। आपमें से जब कभी किसी को जनता बनकर आवाज़ उठानी होगी, तब आप किसकी तरफ़ देखेंगे।
क्या इसी गोदी मीडिया के लिए आप अपनी मेहनत की कमाई का इतना बड़ा हिस्सा हर महीने और हर दिन ख़र्च करना चाहते हैं? क्या आपका पैसा इसी के काम आएगा? आप अपनी आवाज़ ख़त्म करने के लिए इन पर अपना पैसा और वक़्त ख़र्च कर रहे हैं?
इतनी लाचारी ठीक नहीं है। आप कहाँ खड़े हैं ये आपको तय करना है। मीडिया के बड़े हिस्से ने आपको कब का छोड़ दिया है। गोदी मीडिया आपके जनता बने रहने के वजूद पर लगातार प्रहार कर रहा है। बता रहा है कि सत्ता के सामने कोई कुछ नहीं है। आप समझ रहे हैं, ऐसा आपको भ्रम है। दरअसल आप समझ नहीं रहे हैं। आप देख भी नहीं रहे हैं। आप डर से एडजस्ट कर रहे हैं।
एक दिन ये हालत हो जाएगी कि आप डर के अलावा सबकुछ भूल जाएँगे। डरे हुए मरे हुए नज़र आएँगे। फेक दीजिए उठा कर अख़बार और बंद कर दीजिए टीवी।
यह लेख रविश कुमार का है इसमें शब्दो के साथ कोई हेरा फेरी नहीं कि गई है।