लेखक : पत्रकार अशोक राज
वैसे तो राजनीति में नंबर का ही खेल होता है, जिसके पास बड़ा नम्बर वो सिकंदर..लेकिन कभी-कभी व्यक्तित्व राजनीति की लड़ाई में ऊपर होता है।
मैं राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के राज्यसभा सांसद मनोज झा जी के बारे में बात कर रहा हूँ| राज्यसभा के उप सभापति के चुनाव में मनोज झा चुनाव हार गए… लेकिन, मनोज झा ने हार कर भी जीत लिया विपक्षियों का दिल।
आप पूछेंगे कैसे?
पहली बार के सांसद और जुम्मा – जुम्मा दो साल से कुछ महीना ज़्यादा का संसद में अनुभव मात्र…. लेकिन चुनाव उप-सभापति का लड़ा मनोज झा ने।
सफल छात्र, शिक्षक, प्रोफ़ेसर, पिता और पति के साथ साथ मनोज झा बेहद कुशल वक्ता भी है… हिंदी – अंग्रेज़ी में मजबूत पकड़..और बेहद सौम्य गहरी जानकारी के साथ…किसी भी विषय पर फर्राटेदार और ज़ोरदार आवाज़ रखने वाले मनोज झा ने…मात्र दो साल में क़रीब पंद्रह से ज़्यादा विपक्षी पार्टियों के लिए उम्मीदवार बने वो भी राज्यसभा के उप सभापति चुनाव के लिए, ये आसान बात नहीं हैं….। यानी बंदे में है दम।
रही बात…जब इतने अच्छे और गुणी है मनोज झा तो फिर जीते क्यूँ नहीं??? नंबरों की गुणा भाग में मनोज झा हारे ज़रूर…लेकिन हार कर भी मनोज झा ने अपनी जगह उस दौड़ में बना ली जिसके लिए अच्छे-अच्छों की हवा निकल जाती है।
बहरहाल! आज सुबह जब मैंने उनसे पूछा कि आपकी हार हुई है….तो उन्होंने जवाब में मुझे अहमद फ़राज़ का एक शेर अर्ज़ किया,
“तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल, हार जाने का हौसला है मुझमें“
और फिर संसद के लिए चल पड़े।
सच मानिए मैं ख़ुद मनोज झा को नेता कम और छात्र ज़्यादा मानता हूँ।।।
वैसे हरिवंश बाबू भी सरल और सौम्य व्यक्तित्व के लिए जाने जाते है, पूर्व में पत्रकार/सम्पादक और JDU के कोटे से राज्यसभा सांसद और मौजूदा उप सभापति, उनको जीत की ढेरों बधाई।
नोट : यह लेख पत्रकार अशोक राज के फेसबुक वॉल से लिया गया है