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नई दिल्ली : नए सपने देखने की कोई उम्र नही होती पर कुछ विरले ही सपनों को हकीकत में बदल पाते हैं। 91 वर्षीय डॉ कृष्णा सक्सेना ने अपनी कलम से इसे साबित कर दिखाया है। रविवार को दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में डॉ कृष्णा सक्सेना के नए उपन्यास “व्हिसपर्स ऑफ टाइम” का विधिवत विमोचन किया गया। इस अवसर पर केंद्रिय कपड़ा और महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमति स्मृति ईरानी और लेखिका एवं स्तंभकार किश्वर देसाई विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रहीं। प्रभात प्रकाशन ने इस उपन्यास को प्रकाशित किया है।

डॉ कृष्णा सक्सेना ने अपने जीवन के नौ दशकों के निचोड़ को अपनी इस नौवीं पुस्तक “व्हिसपर्स ऑफ टाइम” में उड़ेल दिया है। दशकों के अनुभवों, अहसासों और ऑबजर्वेशन को इस पुस्तक में तथ्यात्मक रूप से पेश किया गया है। पुस्तक के पात्र और घटनाएं दोनों वास्तविक हैं। पुस्तक साधारण शैली में लिखी गई है और यही लेखिका की विशेषता है। उपन्यास को दिलचस्प बनाए रखने के लिए इसे कहानी के रूप में लिखा गया है इसलिए उपन्यास का अंत काल्पनिक है। पर उपन्यास हमें बताता है कि हम और आप किस दिशा में और कहाँ जा रहे हैं।

लेखिका अपने जीवन में तीन पीढ़ियों की साक्षी रही हैं और तीनों पीढ़ियों के बीच उन्होंने काफी अंतर पाया है। अगर पहली पीढ़ी सख्ती से अपनी परंपराओं के पालन में गर्व महसूस करती थी, तो दूसरी पीढ़ी ने प्यार और मदद के नए मूल्यों के प्रति नरम रूख अपनाया, यह एक खूबसूरत दुनिया थी। तीसरी पीढ़ी को वर्तमान पीढ़ी द्वारा खोजी गई नई तकनीकों, प्रौद्योगिकी और अपने विकास पर गर्व है। महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर काम कर रही हैं पर उनके सशक्तीकरण के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। तीनों पीढ़ियों के इस अंतर मतांतर को उपन्यास में रेखांकित किया गया है।

पुस्तक के बारे में बोलते हुए, डॉ. कृष्णा सक्सेना ने कहा, “पुस्तक एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के मूल्यों में परिवर्तन को बारीकी से पकड़ कर पेश करती है। हमारे समाज में बड़े संयुक्त परिवारों की जगह छोटे एकल परिवारों ने ले ली है, महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने के लिए आगे बढ़ रही हैं, यहां तक कि सियासत में भी उनका दखल हो गया है। मध्यवर्ग बड़ा हो गया है और धन-दौलत के साथ असमानता भी बढ़ी है। आजादी के समय हमारी आबादी 40 करोड़ थी जो तेजी से बढ़कर तीन गुना हो गई है। इस सबने हमारे सामाजिक मूल्यों पर अत्यधिक दबाव डाला है। जिसने भी यह उपन्यास पढ़ा उनमें से ज्यादातर की एक ही प्रतिक्रिया थी कि “यह तो मेरी या मेरे परिवार की कहानी जैसी है!”
इस उपन्यास को खुले दिमाग से पढ़े जाने की जरूरत है ताकि बारीक से बारीक परंतु महत्वपूर्ण बातों को पकड़ा जा सके। ऐसी बातें जिसे जीवन के हर कदम पर वक्त आपके कान में फुसफुसाता जरूर है। जैसा कि कोई भी शौकीन पाठक जानता है, किताबें ही सब कुछ हैं। सही पुस्तक आपका मार्गदर्शन, शिक्षिण और प्रेरणा दे सकती है; एक किताब आपके टूटे हुए दिल को जोड़ सकती है या रोमांच की भावना को जगा सकती है, जिससे आप उन लोगों और स्थानों को खोज सकें जिनके बारे में आपने कभी सपने में भी नहीं सोचा था।

डॉ कृष्णा सक्सेना के बारे में
डॉ कृष्णा सक्सेना का शैक्षणिक जीवन उपलब्धियों भरा रहा है। वह भारत में उन गिनी चुनी महिलाओं में शामिल थीं जिन्होंने 1955 में अंग्रेजी साहित्य की पीएचडी डिग्री हासिल की थी। यूपी में यह डिग्री हासिल करने वाली वह पहली महिला थीं। वे दिव्य मां भगवती की भक्त हैं, उन्हें दृढ़ता से लगता है कि आध्यात्मिकता के आधार के बिना, इस भौतिकवादी दुनिया में कुछ भी कभी भी सफल नहीं हो सकता। इसलिए वह भौतिकवाद के साथ अपने कामों में आध्यात्मिकता को जोड़ती हैं। वह दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर रहीं हैं। उनकी रचनाओं में परंपरा के साथ आधुनिकता का अनूठा मिश्रण है। उनकी भाषा बहुत सरल है, उनकी शैली आकर्षक है साथ ही सरलता और तीखापन उनकी विशिष्टता है। वह अपने पाठकों को कठिन समस्याओं को आसान और ठोस तरीके से हल करती हैं।

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By Khabar Desk

Khabar Adda News Desk

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