नई दिल्ली : लॉक डाउन की वजह से आप भूखे है घर मे कुछ खाने के लिए नहीं है और आप बिस्कुट लेने घर बाहर निकलते है तो उसके बाद घर पर आपकी जगह आपकी लाश आती है। जी बिलकुल यह उत्तरप्रदेश की सच्ची घटना है।
अगर कोई लॉक डाउन के नियम को ना माने तो पुलिस उस पर ज़रूर करवाई करे लेकिन करवाई का मतलब यह बिल्कुल नहीं होता है कि उसे मार मार कर मौत के घाट उतार दें। एक गरीब के पास कोई ऑप्शन नहीं होता जब उसे कोरोना से पहले ने भूख ने अधमरा बना दिया हो। ऐसा ही कुछ हाल 22 साल के रिजवान का भी था।
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मजदूरी करने वाले 22 वर्षीय रिज़वान अहमद की शनिवार को यूपी के अंबेडकर नगर जिले में मौत हो गई, लॉकडाउन के दौरान बाहर निकलते समय पुलिस द्वारा कथित तौर पर पिटाई की गई थी।
अपनी पुलिस शिकायत में, रिजवान के पिता इजरायल ने कहा कि उनका बेटा 15 अप्रैल को शाम 4 बजे घरेलू सामान खरीदने के लिए बाहर गया था। वहीं रिजवान के रिश्तेदार ने The Hindu से बात करते हुए बताया कि भूख लगने पर वह बिस्कुट खरीदने गया था। लेकिन जब वह वापस आया तो बुरी तरह घायल था और उसका शरीर चोट के निशान से नीला पड़ गया था और कुछ ही घंटों बाद उसकी मौत हो जाती है। अब तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट नही आया है। सवाल यह उठता है कि क्या उत्तरप्रदेश में लॉक डाउन का उल्लंघन करने वालों की सज़ा मौत है?