Fri. Oct 18th, 2024

लेखक : रवीश कुमार

लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में,
यहां पर सिर्फ हमारा मकान थोड़े ही है,
हमारे मुंह से जो निकले वही सदाकत है,
हमारे मुंह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है।
मैं जानता हूं कि दुश्मन भी कम नहीं,
लेकिन हमारी तरह हथेली पर जान थोड़ी है।
जो आज साहिबे मसनद हैं, कल नहीं होंगे,
किरायेदार हैं, ज़ाती मकान थोड़ी हैं।
सभी का ख़ून है शामिल, यहां की मिट्टी में,
किसी के बाप का हिन्दुस्तान थोड़ी हैं।

राहत इंदौरी याद रखे जाएँगे। सरकारों के सामने दहाड़ने वाले शायर थे। मिमियाने वाले नहीं। दाद के तलबगार नहीं थे। दावा करने वाले शायर थे। इसलिए उनकी शायरी में वतन से मोहब्बत और उसकी मिट्टी पर हक़ की दावेदारी ठाठ से कर गए। नागरिकता क़ानून के विरोध के दौर में उनके शेर सड़कों पर दहाड़ रहे थे। जिन्होंने उन्हें देखा तक नहीं, सुना तक नहीं वो उनके शेर पोस्टर बैनर पर लिख आवाज़ बुलंद कर रहे थे। राहत इंदौरी साहब आपका बहुत शुक्रिया। आप हमेशा याद आएँगे। आपकी शायरी शमशीर सी बनकर चमक रही है। आपकी शायरी का प्यारा हिन्दुस्तान परचम बन लहराता रहेगा।

सुख़नवरों ने ख़ुद बना दिया सुख़न को एक मज़ाक
ज़रा-सी दाद क्या मिली ख़िताब माँगने लगे

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By Khabar Desk

Khabar Adda News Desk

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