लेखक : अनुपम (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष स्वराज इंडिया)
भारत चीन सीमा से तरह तरह की खबर, वीडियो और तस्वीरें आ रही हैं। आपने भी शायद इनमें से कुछ देखा होगा। जाने माने रक्षा विशेषज्ञ अजय शुक्ला से लेकर प्रतिष्ठित रणनीतिक लेखक ब्रम्हा छेलानी ने भी कई सनसनीखेज़ तथ्यों का खुलासा किया है। ये सब सुनकर और देखकर प्रतीत होता है कि हमारे जवानों और चीनी सैनिकों के बीच लद्दाख में भारी तनाव है।
बताया जा रहा है कि 1999 कारगिल के बाद ये अब तक का सबसे बड़ा सीमा उल्लंघन है। रिपोर्ट है कि जिस LAC को चीन खुद मान्यता देता है, उसके भी 3 से 4 किलोमीटर अंदर घुसकर टेंट लगा लिया है पीएलए के सैनिकों ने। इतना ही नहीं, खबर तो ये भी है कि चीन ने बातचीत के कूटनीतिक चैनल भी बंद कर दिए हैं।
मुझे लगता है कि चीन शायद अपने लोगों का ध्यान भटकाने के लिए ये सब कर रहा है। क्योंकि कोरोना वायरस के मामले में शी जिनपिंग सिर्फ दुनिया भर में ही नहीं बल्कि अपनी जनता के सवालों से भी घिरे हुए हैं। इसलिए एकाएक हॉन्ग कॉन्ग, साउथ चाइना सी और लद्दाख में शैतानियां करने लगे।
या फिर हो सकता है चीन ये सब सिर्फ भारत पर दबाव बनाने के लिए कर रहा हो ताकि चीन के खिलाफ हो रही अंतर्राष्ट्रीय लामबंदी में हम ज़्यादा सक्रिय न रहे।
लेकिन सवाल ये है कि जिनपिंग को कभी साबरमती तट पर झूला झुलाने वाले तो कभी तमिल नाडु में लुंगी पहनकर टहलाने वाले प्रधानमंत्री मोदी क्या कर रहे हैं। पिछली सरकारों को पानी पीकर कोसने वाले मोदी जी, चीन को लाल आँख दिखाने की बात करने वाले मोदी जी अभी अपने देश को तनाव की जानकारी तक क्यों नहीं दे रहे?
हमारे सेना अध्यक्ष नेपाल के खिलाफ बयान देने में दो पल नहीं सोचते हैं, जब ज़रूरत पड़े तब राजनीतिक बयानबाज़ी करने लग जाते हैं मीडिया में, वो इस मसले पर कोई नपे तुले ढंग से भी सूचना तक नहीं दे रहे हमें?
और जो “राष्ट्रवादी” मीडिया टीवी चैनल के स्टूडियो में ही बैठकर युद्धघोष करते रहती है उसको सीमा के इतने अंदर दुश्मन के घुस जाने के बावजूद साँप सूंघ गया क्या? जो “देशभक्त” पत्रकार चीन पाकिस्तान के नाम पर ट्विटर पोल करवाते रहते हैं, उनका ट्विटर अकाउंट अब ब्लॉक हो गया क्या?
ख़ैर आप इनसे उम्मीद भी क्या कर सकते हैं। चीन के लिए जो बात समझने वाली है वो ये कि ये 1962 का हिंदुस्तान नहीं है। और चीन ने अपने कारनामों से विश्व समुदाय में भी खुद को ऐसा अलग थलग कर लिया है कि ये विश्व भी 1962 का नहीं है। आर्थिक पैमानों पर भी हम चीन से जितना लेते हैं उससे ज़्यादा दे देते हैं। भारत और चीन के बीच का बड़ा ट्रेड डेफिसिट भी इस बात का सबूत है।
इसलिए आज चीन के सामने हमें दबने, झुकने या छिपने की कोई ज़रूरत नहीं है। सही मायनों में आँख में आँख दिखाकर बात करने की ज़रूरत है। हॉन्ग कॉन्ग में उठाये गए चीनी कदम के विरोध में बोलने की ज़रूरत है। ऊघर समुदाय का जो संस्थागत उत्पीड़न और अन्याय हो रहा है उसके खिलाफ भी बोलने की ज़रूरत है। वहाँ हो रहे मानव अधिकार हनन पर बोलने की ज़रूरत है।
चीन की इन घाटियों हरकतों से मोदी सरकार को डरकर चुप नहीं हो जाना चाहिए। बल्कि ये एहसास दिलाना चाहिए कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने की ज़िम्मेदारी हम समझते हैं और हर ऐसे गंभीर मुद्दे पर अपनी स्पष्ट राय भी रखते हैं।
इस कठिन वक्त में जब पूरा देश कोरोना के खिलाफ लड़ रहा है तो मोदी सरकार से न्यूनतम अपेक्षा है कि छिपने या दुबकने की बजाए देश को सही जानकारी देकर विश्वास में ले। ऐसे नहीं चलेगा!