जो दूरदर्शन से परिचित हैं वो जानते होंगे कि 1959 में उसके भारत में प्रसारण से लेकर 90 के बाद की केबल क्रांति से पहले उसका एकछत्र राज था। टेलीविजन तब ‘ बुद्धू बक्सा’ नहीं हुआ करता था। उसपर बुनियाद, हम लोग, नुक्कड़, सर्कस, फौजी जैसे ऐतिहासिक धारावाहिक आते थे जो जनता में लोकप्रिय थे। तब घर घर की कहानी इन्हीं के इर्द गिर्द घूमती रहती थी। टेलीविजन का पर्याय तब दूरदर्शन ही था।
जहाँ तक मुझे मेरे बचपन की याद है 8.30 शाम को दूरदर्शन न्यूज़ आया करती थी, जिसमें हमारी रुचि न के बराबर थी। तब फिल्मी गानों वाले कार्यक्रम जैसे चित्रहार, रंगोली, तराना, सुरभि हमें बहुत पसंद थे। गांव में आज के विकास की भांति तब लाइट आने-जाने का कोई निश्चित वक़्त नहीं था। अतः टीवी कम देखते थे। सरकारी स्कूल में पढ़ते थे, इसलिए होमवर्क का ज्यादा बोझ नहीं था। दोस्तों के साथ वो कार्य भी पल भर में हम कर लिया करते थे। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि किशोरावस्था में कदम रख चुके थे और जिंदगी को जानने समझने लगे थे। खूबसूरती को देखने का नज़रिया तब अलग था जिसमें कोमल और भावात्मक सम्बद्धता ज्यादा थी।
फिर आया सन 1995। तब मैं 9वीं कक्षा का विद्यार्थी था। मेरे दोस्त विनोद ने कहा कि न्यूज़ देखना आज, कोई हिरोइन सी महिला है जो न्यूज़ सुनाती है। ठीक है, कहकर मैनें शाम का इंतजार किया और खास बीट के बाद जब न्यूज़ बुलेटिन प्रारम्भ हुआ तो देखा नीलम जी एक सुंदर साड़ी में प्यारी अदा और नज़ाकत के साथ न्यूज़ केवल पढ़ ही नहीं रहीं बल्कि अपनी आंखों से सब समझा भी रही थी। भावों का उतार चढ़ाव, उच्चारण, लय, तारतम्यता, बाल, भौहें, माँग, गले की चैन, बिंदिया, हाथों की जुम्बिश, अनासक्त अधर, सभ्य वस्त्र, कॉलर माइक, और वो बोलती आंखें, आप यकीन कीजिएगा, तमाम दर्शकों के साथ साथ नीलम जी मेरा पहला प्यार बन गईं। अब उनका इंतजार होता, रोटेशन के कारण कभी वे नहीं आतीं तो मन उदास होता, न्यूज़ न देखी जाती। रोटी खाकर चुप लगाकर सो जाते। फिर ख्याल आते।
आज जब वे हमारे बीच नहीं हैं, सोचता हूँ क्या उन जैसी कोई एंकर हो पाएगी। शांत, गम्भीर मुद्रा में कोमल स्वर वाली नीलम जी जो मेरे जैसे न जाने कितनों की धड़कनों में हमेशा के लिए जिंदा रहेगी, चीखते मिमियाते एंकर्स की भीड़ क्या उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी पाएगी। क्या उनकी कमी की भरपाई हो पाएगी।
अलविदा नीलम जी। हाय कैंसर, तुझे कैंसर हो जाए। सम्भवतः आज दूरदर्शन से आखरी रिश्ता भी खत्म हुआ। सादर नमन।