सबरीमाला मन्दिर हिंदुओं की प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है जिसकी गिनती दुनिया के बड़ी मंदिरों में होता है, यह राज्य केरल के Perunad जिले में स्थित है . बारहवीं सदी में पंडलम राज्य के राजकुमार मनिका नंद द्वारा उसकी खोज एक पहाड़ी पर हुई थी। यह मंदिर पुरा वर्ष या सभी दिन नहीं खुलती है बल्कि कुछ विशेष दिन में ही खुलती हैं जिन दिनों में दर्शकों को जाने की अनुमति होती है . जैसे 15 नवंबर से 26 दिसंबर तक चालीस दिन यहाँ हिंदू देर्शक आते हैं, इसी तरह 14 जनवरी को मकरासनकरानती के अवसर पर। 14 अप्रैल को, महा विश्व संसर्कांति के अवसर पर हर महीने के पहले पांच दिनों में पूजा के लिए मंदिर के दरवाजे खुलते हैं।
इंटरनेट पर प्राप्त जानकारी के अनुसार इस मंदिर में शुरू से पुरुष महिलाओं के जाने का रिवाज रहा है, ऐसी कोई तिथि और मिसाल नहीं मिलती है, जिसके आधार पर यह कहा जा सकता कि यहां हिंदुओं के धार्मिक दृष्टिकोण से महिलाओं का जाना निषिद्ध रहा .31 मई 1940 में यहां के राजा तरान विनकोर ने अपनी पत्नी के साथ इस मंदिर की भ्रमन की थी .विवाद की शुरुआत तब हुई जब 1991 में केरल हाईकोर्ट ने तेरान विकोर बादशाहत और पूर्व से जारी श्रृंखला का विरोध करते हुए 10 से 50 साल की उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दीया। केरल उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में भेज दिया गया था सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर 2018 को खारिज करते हुए हर उम्र की महिलाओं के लिए सबरीमा ला मंदिर का दरवाज़ा खोलने का आदेश दिया सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अमलीजामा पहनाते हुए केरल की राज्य सरकार ने 17 अक्टूबर की शाम को मंदिर का दरवाज़ा खोलकर निर्णय लागू करने की कोशिश की लेकिन वह ऐसा करने में सफल नही रहे .लेफ्ट और राइट की युद्ध के बीच पुलिस भी हिंसा पर काबू नहीं पा सकी.मंदिर में जाने वाली महिलाओं को जबरन रोका गया, उन पर हमला किया गया यानी सुप्रीम कोर्ट के फैसले की खुलेआम अवहेलना की गईं और दयालु प्रदर्शनकारियों की बीजेपी भी पूरी तरह से समर्थन किया।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय देश के हिंदू संगठनों स्विकार नहीं है , 30 से अधिक हिंदू संगठन लगातार इसके खिलाफ विरोध कर रहे हैं, हिंदू महिलाएं भी इस फैसले का विरोध कर रही हैं। यह आस्था के खिलाफ बताया जा रहा . खुलेआम सुप्रीम कोर्ट की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, धर्म में हस्तक्षेप के नाम पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला उन्हें मंजूर नहीं है .साढ़े चार वर्षों के दौरान हर पल महिलाओं को समान अधिकार देने और उनकी बराबरी की बात करने वाली भाजपा भी सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का स्पष्ट शब्दों में विरोध करते हुए यह कह रही है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला हिंदू पर्सनल लाॅ में हस्तक्षेप, वर्षो से चली आ रही है परंपरा को खत्म करने के लिए न्यायपालिका को कोई अधिकार नहीं है .हिन्दुस्तान जैसे देश में धार्मिक भावनाओं का ख्याल रखना महत्वपूर्ण है।
यह सभी पंडित, बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद और अन्य संगठनों ने उस समय दोनों हाथों से तालियां बजाई थीं जब बॉम्बे हाईकोर्ट ने अगस्त 2016 में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि हाजी अली दरगाह में महिलाओं को जाने से रोकना संविधान की धारा 14/15 और 25 की अवहेलना है, महिलाओं का अपमान और महिलाओं का हक वंचित करना है। इसके बाद अक्टूबर में यह मामला सुप्रीम कोर्ट में आया जहां दरगाह ट्रस्ट ने आश्वासन दिया कि हमारे समिति ने प्रस्ताव पारित करके महिलाओं पर प्रतिबंध समाप्त कर दी है। इस अवसर पर भाजपा ने भी खूब जश्न मनाया। मुस्लिम महिलाओं की जीत के करार देते हुए, मुस्लिम विद्वानों और के खिलाफ बहुत क्रोध निकाला था।
मुस्लिम महिलाओं को समान अधिकार देने और पुरुषों के बराबर करने के नाम पर तलाक के मामले में भी भाजपा ने भरपूर हस्तक्षेप किया, सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में अटॉर्नी जनरल ने कहा कि सरकार को सिरे से इस्लाम प्रणाली तलाक ही स्वीकृत नहीं है 22 अगस्त, 2017 को, सुप्रीम कोर्ट ने तलाक को अवैद्द करार दे दिया। यह निर्णय इस्लामी कानून और मुस्लिम पर्सनल लॉ के खिलाफ था,
किसी भी मसलक के प्रति नहीं था, भारत के 200 से अधिक शहरों में मुस्लिम महिलाओं ने लाखों की संख्या मे सड़कों पर उतर कर इसके खिलाफ विरोध किया था, दस पुरुष व मुस्लिम महिलाएं के अलावा, भारत के सभी मुसलमानों ने इसे धर्म मे दखल देने वाला निर्णय करार दिया, , लेकिन चरमपंथी पुरातत्वविद हिंदू संगठनों, आरएसएस और कम्युनिस्टों ने स्वागत किया। बीजेपी दस कदम आगे आकर यहां तक यह भी कह दिया था कि जिन महिलाओं को पिछले 1400 वर्षों में अधिकार नहीं मिला, उसे मोदी सरकार ने इंसाफ दिलवाया । कुछ महीने बाद बीजेपी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ एक बिल भी ले आई यहां तक कि लोकसभा से गुजरने में भी सफल रहा। राज्यसभा में विफलता का सामना करने के बाद, उन्होंने तीन तलाक पर अध्यादेश भी पास कर दिए । भाजपा और उसके संगठनों ने हमेशा यही कहा कि हमारे इस संघर्ष का उद्देश्य मुस्लिम महिलाओं को उसका अधिकार देना, पुरुषों की गुलामी से निजात दिलाना, तीन तलाक से छुटकारा और उन्हें शरीयत की कैद से आज़ाद कराना है सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए , मुस्लिमो के विरोध प्रदर्शन के बावजूद अध्यादेश को लागू किया गया और कहा कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार काम कर रही है। भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देशों और 21 वीं शताब्दी में मुस्लिम महिलाएं स्वतंत्रता और समानता खो नहीं सकती हैं।
आज यही सरकार, यही पार्टी और मोदी एण्ड कंपनी सबरीमा माला मंदिर के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के आए फैसले का विरोध कर रही है, तमिलनाडु, कर्नाटक और अन्य कई स्थानों से महिलाओं को केरल पहुंचा कर विरोध करवा रही है, मंदिर जाने वाली महिलाओं पर हमला करवाया जा रहा है, पत्रकारों के साथ हिंसा किया जा रहा है, आईडी कार्ड चेक रहे हैं, राज्य सरका रास निर्णय को लागू करने के लिए पूरी कोशिश में लगी हुई है लेकिन दूसरी तरफ केंद्र सरकार, भाजपा और उसकी संगठन हिंदू महिलाओं को इक्कीसवीं सदी मैं मंदिर जाने देना नहीं चाहती है, महिलाओं के जाने का रास्ता बंद कर दिया जा रहा है। वापस किया जा रहा है, पुलिस को काम करने नहीं दिया जा रहा है .बरसों पुरानी परंपराओं का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना की जा रही है।
यह दोहरी नीति क्यों है? महिलाओं के नाम पर मंदिर जाने से रोका जाना क्या है? क्या बीजेपी को सुप्रीम कोर्ट का विरोध करना सही है? भाजपा खुद हिंदू महिलाओं को मुस्लिम महिलाओं के बराबर अधिकार देना क्यो नही चाहती? क्या हिंदू महिलाओं को मंदिर जाने और पूजा करने का अधिकार नहीं है?
सुब्रिमा माला मंदिर के मामले के कारण, चरमपंथी हिंदू तत्वों, विश्लेषकों और सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं के साथ टीवी एंकर और सोशल मीडिया उपयोगकर्ता का दृष्टिकोण भी बदल रहा है। हजी अली, तीन तलाक और मुसलमानों से संबंधित अन्य मुद्दे पर चिल्ला रहे थे और मुस्लिम महिलाओं के समानता और अधिकारों के बारे में बात कर रहे थे, लेकिन उनकी भाषा विषय क के बारे में चुप हैं। जब उन्हें मंदिर जाने का अधिकार मिलता है तो हिंदू महिलाएं उनका समर्थन नहीं कर रही हैं। धर्मनिरपेक्ष देश में मुस्लिम महिलाओं को समान अधिकार देने की बात करने वाले हिंदू महिलाओं को समान अधिकार नहीं देना चाहते हैं .हद यह हो गई है कि टीवी एंकर भाजपा और हिन्दुत्व संगठन के हिंसक प्रदर्शनों और न्यायपालिका की अवमानना पर उनकी आलोचना, विरोध और निंदा करने के बजाय, केरल की पूछताछ पर सवाल उठा रहा है कि जब यह निर्णय लिया गया कि हिंदुओं की धारणा खाली थी तो अदालत में संशोधन अनुरोध क्यों नहीं किया गया था। इस फैसले को लागू करने के लिए राज्य इतनी जल्दी मे क्यों है?
कुछ एंकर, पत्रकार और सामाजिक मीडिया उपयोगकर्ताओं हिंसक विरोध सामने लाने और भाजपा का दोहरा चेहरा बेनकाब करने के बजाय यहां भी मुसलमानों का सहारा लेकर अपने अपराध पर पर्दा डालने की कोशिश करते हुए यह कह रहे हैं कि मस्जिदों में भी महिलाओं को जाने की अनुमति नहीं है। सुप्रीम कोर्ट इसके खिलाफ क्यों फैसला नहीं करता है, मस्जिदों में महिलाओं की आवाज़ क्यों नहीं उठाई जा रही है, क्यों केवल मंदिर के प्रवेश के बारे में चिंतित हैं, यह हमेशा हिंदू धर्म में क्यों बाधित होता है? ऐसे भक्तों और टीवी एंकर के लिए आवश्यक है कि वे इस्लाम के बारे में कुछ बुनियादी जानकारी प्राप्त कर लें या जो लोग वहाँ जाते हैं उन्हें बता दें कि इस्लाम मस्जिद के अंदर महिलाओं के नमाज़ पढ़ना और प्रवेश होना कभी निषिद्ध नहीं रहा, दुनिया भर के कई महिलाएं मस्जिदों में नमाज अदा करती हैं, कई मस्जिदों में महिलाओं की व्यवस्था करते हैं। काबा में नमाज अदा करने वाली महिलाएं नमाज अदा कर रही हैं। यह महिलाओं को घर पर नमाज अदा करने या मस्जिद चुनने पर निर्भर करता है। यह हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि इस्लाम एक व्यापक और पूर्ण धर्म है।
समाज के अंदर कोई खराबी हो सकती है परंतु, इस्लाम में इसकी कोई जगह नहीं है।
(लेखक मिल्लत टाइम्स के संपादक एवं विश्लेषक हैं)