बाबा रामदेव का फ्रॉड लगातार सामने आता जा रहा है. उत्तराखंड के आयुर्वेद डिपार्टमेंट का कहना है कि पतंजलित को केवल इम्युनिटी बूस्टर बनाने का लाइसेंस दिया गया था ना कि कोरोना की दवा बनाने का लाइसेंस. हम इस संदर्भ में पूरी जांच करेंगे.
बाबा कल हर टीवी चैनल पर कह रहे थे कि हमारे पास दवा बनाने का लाइसेंस है. साफ झूठ बोल रहे थे.
बहरहाल, सरकारों की भी इसमें मिलीभगत है.
आयुष मंत्रालय ने अप्रैल में कहा था कि जो कोई भी आयुर्वेद से कोरोना के इलाज का दावा करेगा उसके ऊपर कार्रवाई की जाएगी. लेकिन रामदेव के ऊपर कोई कार्रवाई नहीं हुई बल्कि पतंजलि को अपनी कथित दवा लॉन्च करने का पूरा मौका दिया गया. बाद में जरूर विज्ञापन पर रोक लगा दी.
पतंजिल ने ये कथित दवा लॉन्च करने से ठीक एक सप्ताह पहले घोषणा की थी हम कोरोना की दवा लॉन्च करने जा रहे हैं. क्या तब आयुष मंत्रालय को होश नहीं आया कि एक आदमी कोरोना को लेकर दवा लॉन्चिंग की घोषणा कर रहा तो चलो इसकी जांच कर ली जाएगी. मतलब कोरोना जैसे सीरियस मामले में इतनी ढील देने की जरूरत क्या थी.
ठीक यही हाल अब उत्तराखंड के आयुर्वेद विभाग का है. एक हफ्ते पहले इस डिपार्टमेंट को होश नहीं आया कि पतंजलि को तो केवल इम्युनिटी बूस्टर बनाने का लाइसेंस दिया गया था तो फिर ये दवा बनाने का दावा कैसे हो रहा है. ये डिपार्टमेंट अगर चाहता तो केंद्र सरकार को पहले ही आगाह कर सकता था. लेकिन सांठ गांठ अलग ही स्तर पर चल रही थी.
खैर, बाबा जी ने तुलसी, अश्वगंधा, गिलॉय इत्यादि को पैकेट में बंद करके उसे कोरोना की दवा बता दिया है. बाबा जी इसको 600 रुपये में बेचेंगे. आदमी अगर इसे नॉर्मल तरीके से खरीदेगा तो ये सब कुल मिलाकर 50 रुपये का पड़ेगा. कोरोना के डर का फायदा उठाकर बाबा जी एक किट पर साढ़े पांच सौ रुपये कमाएंगे. आपदा में अवसर इसी को कहते हैं.
(यह लेख मुरारी त्रिपाठी के फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)