सोशल मीडिया से लेकर मेन स्ट्रीम मीडिया में बहुत से ऐसे लेखक है जो शोषित, अल्पसंख्यकों, दलितों और महिलाओं के लिए आवाज़ उठा रहे हैं। उन्हीं में से एक नाम है अशरफ हुसैन का, जो कि एक स्वतंत्र लेखक एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं और सोशल मीडिया पर निष्पक्ष एवं बेबाक राय रखने के लिए भी जाने जाते हैं। इनके फेसबुक पर 60 हजार फॉलोवर और वर्तमान में ट्विटर पर 90 हज़ार से अधिक फ़ॉलोवेर्स हैं। कई वेबसाइटों पर लेख लिखने वाले अशरफ ट्विटर पर काफी सक्रिय हैं और लगातार राजनीतिक सामाजिक मुद्दों के साथ देश में मुसलमानों के प्रति बढ़ते हेट क्राइम पर लिख रहे हैं। इसी सिलसिले में हमारे संवाददाता ने अशरफ से कुछ सवालों पर उनकी राय जानने की कोशिश की…
सवाल – अशरफ सबसे पहले आप हमारे पाठकों को अपने बारे में बताए जैसे कि आपने शिक्षा कहाँ से हासिल की और अभी क्या कर रहे है?
अशरफ – अपने बारे में बताने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है झारखंड के छोटे से गांव से हूँ। जहाँ गाँव के ही एक सरकारी विद्यालय से अपनी आरंभिक पढ़ाई शुरू की और आगे की शिक्षा प्राप्त करने के बाद वर्तमान में सामाजिक मुद्दों पर लिखने के साथ- साथ कारोबार में भी व्यस्तता है।
सवाल: आप सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय रहते है तो आपको ऐसा कब लगा कि सोशल मीडिया के ज़रिए अपनी बात लोगों तक पहुंचाएं?
अशरफ – दरअसल कॉलेज के समय तक कोई लक्ष्य नही तय कर पाया था जिस प्रकार अमूमन नौजवानों के सपने होते हैं। एक आंखों देखी हादसे के बाद मैंने उस पर प्रिंट मीडिया में छपी खबर देखी जो कि घटना के बिल्कुल विपरीत थी तब मैंने तय किया कि मैं पत्रकार बनूंगा और लिखने की शुरूआत हुई। किन्ही कारणों से पत्रकारिता मुकम्मल नहीं कर पाया लेकिन पत्रकार बनने का वह हौसला और जुनून अब भी है जिसकी वजह से हर समसमायिक मुद्दों पर एक स्वतंत्र लेखक के रूप में खुल कर लिखता हूँ।
सवाल- आप खुद को एक स्वतंत्र लेखक के रूप में प्रस्तुत करते हैं, ऐसी क्या वजह है कि लेखक के आगे स्वतंत्र लगाने की आज आवयश्कता पड़ रही है ?
अशरफ – इस दौर में जब लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाली मीडिया अपने कर्तव्यों पर खड़ी नहीं उतरती दिख रही है और एक पार्टी विशेष और उसके विचारधाराओं को प्रमोट करती दिखती है, टीवी पर सूट और टाई में बैठा पत्रकार नहीं प्रवक्ता नज़र आता है उस समय निष्पक्ष होकर देश के अहम मुद्दों पर सत्ता से सवाल करना ही स्वतंत्र होकर लिखना या बोलना है। ऐसे में मुझे लगता है कि मैं हर मुद्दे पर निष्पक्षता से सरकार से सवाल पूछता हूँ और यही स्वतंत्र लेखक या पत्रकार का काम है मैं पहले भी कर रहा था और आगे भी करता रहूंगा।
सवाल- सोशल मीडिया पर आपके ऊपर काफ़ी आरोप लगते है जैसे किसी पार्टी विशेष की तरफ आपका रुझान होना या सिर्फ एक ही विचारधारा पर लिखना ? ऐसे में आप खुद को निष्पक्ष कैसे मान सकते है ?
अशरफ – मैं खुद को एक स्वतंत्र पत्रकार के रूप में ही समझता हूं ना कि किसी पार्टी का नेता। हां समाज के काम कराने के लिए राजनीतिक लोगो से सम्पर्क करना पड़ता है मगर इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं निकाला जा सकता हम जिस पार्टी के नेता से मिल रहे हैं उसके प्रति हम नर्म हैं। ऐसा नहीं हैं ये बेबुनियाद आरोप है। हमारा काम निष्पक्षता से बेबाक होकर अपनी राय रखना है जाहिर उससे किसी एक दल के समर्थकों को तकलीफ होगी और वे तर्कहीन होकर आरोप लगा देते हैं। जैसे इस वक्त अगर आप केन्द्र सरकार की आलोचना करेंगे तो आप पर कांग्रेसी होने का आरोप लगेगा और किसी राज्य सरकार की आलोचना करते हैं तब किसी दूसरे का होने का आरोप लगाकर पल्ला झाड़ लेना आसान रहता है।
सवाल – आप मुस्लमानों के लिए सोशल मीडिया पर एक आवाज कहे जाते हैं आज मुस्लमानों की जो स्तिथि है उसके लिए आप किसे जिम्मेदार मानते हैं?
अशरफ – मुस्लमानों की स्तिथि को लेकर सच्चर कमेटी और दूसरी कई रिपोर्ट्स सामने आई है जिसमें इस बात का साफ उल्लेख मिलता है कि मुस्लमानों की अभी जो स्तिथि है वह दलितों से भी बदतर है ऐसे में मेरे हिसाब से मुस्लमानों की इस स्तिथि के पीछे तीन मुख्य कारण है जिसमें पहली और अहम वजह मुस्लिम समुदाय में शिक्षा का ना होना। जब आप शिक्षा दर देखेंगे तो आंकड़े देख आप हैरान हो जाएंगे क्योंकि वह आँकड़े ना के बराबर है। हालांकि पिछले कुछ सालों में इन आंकड़ों में कुछ इजाफा हुआ है लेकिन वह काफ़ी नहीं है। वहीं दूसरी तरफ सरकारी नौकरियों में भी मुस्लमानों का कम प्रतिशत होना भी चिंतनीय है। आज बच्चों की शिक्षा पर अधिक ध्यान देने की आवयश्कता है जिससे भविष्य में कोई वैज्ञानिक बने , तो बड़ी संख्या में छात्र UPSC जैसी परीक्षाओं में क्वालीफाई हो और इसके इलावा सेना में जा कर देश का मान सम्मान बढ़ाए। जिससे देश विकास के रास्ते पर और तेज़ी से आगे बढ़ेगा वहीं दूसरी तरफ मुस्लिम समुदाय की स्तिथि में भी सुधार होगा।
दूसरी वजह है सियासत में मुस्लिमों की भागीदारी का होना या यूं कहें कि मुस्लिम सियासतदानों की कमी का होना जो उनकी आवाज बन सकें। आज़ादी के बाद से अब तक कुछ तथाकथित सेक्युलर पार्टियों ने उन्हें सिर्फ वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया है औऱ मुस्लमानों की बदहाली का ज़िम्मेदार यह तथाकथित सेक्युलर पार्टियां भी है।
मुस्लमानों की बदहाली की तीसरी और सबसे अहम वजह है ” संप्रदायिक दंगे’। आज तक हुए अधिकतर दंगों में अल्पसंख्यकों को काफी नुकसान हुआ है गुजरात से लेकर मुजफ्फरनगर के दंगो को आप देखें तो मुस्लमानों ने अपना बहुत कुछ खोया है जिसके बाद उन्हें वापस खड़े होने में दशकों लग गए पर अबभी भी वह ढंग से खड़े नहीं हो पाए है।
सवाल – क्या आपको लगता है सोशल मीडिया पर मुस्लिमों की बात करने से स्थिति बदल सकती है ?
अशरफ – मीडिया हो या सोशल मीडिया ये सिर्फ मुद्दो, और समस्याओं से परिचित कराती हैं स्थिति बदलने के लिए जमीन पर उतरकर काम करना पड़ता है और मुझे लगता है कि सब को मिलकर ज़मीनी स्तर पर काम करने की ज़रूरत है।
सवाल – आज कल सोशल मीडिया पर नए लोग आ रहे है वह खुल कर अपनी बात रख रहे है वह सोशल मीडिया पर अशरफ को अपना आदर्श मान रहे है या फिर उन जैसा फैन फॉलोइंग बनाना चाहते है ऐसे में आप उन्हें क्या सुझाव देना चाहेंगे?
जवाब – अच्छा लिखें, खुले दिमाग से लिखें, बायस्ड होकर न लिखें, जज्बात में बहकर न लिखें। अगर अत्याचार मुस्लमानों पर हो रहा है तो यह सोचकर न लिखें कि वह मुस्लमान है बल्कि यह सोचकर लिखें कि वह इंसान भी है। हर तरह के अत्याचार के खिलाफ लिखें, शोषण के खिलाफ लिखें, अपने अधिकारों की प्राप्ती के लिए लिखें। लिखते समय इस बात का ख़याल रखे कि वह धर्म, जाति,वर्ग, संप्रदाय और भाषा से उपर उठकर इंसानियत के लिए लिखें।
सवाल : आप खबर अड्डा के पाठकों को क्या सलाह देना चाहते हैं?
अशरफ : खबर अड्डा पिछले कुछ महीनों में एक उभरता हुआ न्यूज़ वेबसाइट दिखा है जिसने सोशल मीडिया पर निष्पक्ष पत्रकारिता को एक नई उम्मीद दी है। ऐसे में मैं अपने चाहने वालों से कहूंगा कि आप इसे यूट्यूब पर भी सब्सक्राइब करें।