लेखक : रविश कुमार
मेरे इन बॉक्स में असम से मेसेज आने लगे हैं। तस्वीरें भी। वहाँ की लगभग हर यूनिवर्सिटी कैंपस में नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध हो रहा है। उनका कहना है भाषा पहले हैं। धर्म बाद में। नागरिकता संशोधन विधेयक धर्म के आधार पर बना है। भारत के संविधान के सेकुलर ढाँचे को ध्वस्त किया जा रहा है। कॉटन यूनिवर्सिटी में भी बड़ा प्रदर्शन हुआ है। बताया जा रहा है कि चार हज़ार लोग जमा थे। डिब्रूगढ़ यूनिवर्सिटी और तेज़पुर यूनिवर्सिटी में भी हज़ारों छात्रों ने रात को मशाल जुलूस निकाली है।परीक्षा का दौर चल रहा है इसके बाद भी असम की यूनिवर्सिटी और कॉलेज में आवाज़ उठ रही है। एक छात्र अभिषेक ने बताया कि जगन्नाथ बरुआ महाविद्यालय, देवराज रॉय महाविद्यालय, भोला बरुआ महाविद्यालय इत्यादि करीबन ५० से ज्यादा महाविद्यालय के दस हज़ार से ज्यादा छात्र- छात्रों ने CaB के विरोध हो रहे आंदोलन में भाग लिया है। असम के अधिकतम महाविद्यालय के छात्र एकता सभा ने भी इसका विरोध किया है।
असम के कैंपस धधक रहे हैं। दिल्ली का मीडिया इस तरफ़ नहीं देखेगा। उसे सरकार के लिए धर्म के आधार पर ‘नैरेटिव’ बनाना है। हिन्दी प्रदेशों की राजनीतिक सोच को ख़ास तरह से धार देने के लिए पहले कश्मीर और अब असम के साथ खिलवाड़ हो रहा है। सोमवार को नागरिकता संशोधन विधेयक पेश हो सकता है। उम्मीद है सरकार असम की आवाज़ सुनेगी।
नोट: असम का कोई छात्र इसे पढ़ रहा है और जानकारी भेजना चाहता है तो सारी तस्वीरें और वीडियो को इसी तरह से खींचे और रिकार्ड करे। लैंडस्केप मोड़ में। जिस तरह से ये सारी तस्वीरें ली गई हैं। फ़ोन सीधा कर फ़ोटो न लें। फिर यह भी बताएँ कि आपकी आपत्ति क्या है ताकि सरकार और हिन्दी प्रदेशों तक पहुँच सके।