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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या मामले में सुनाये गए फैसले पर जमीयत उलेमा ऐ हिन्द के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने कहा है कि उच्चतम न्यायालय का फैसला ‘समझ से परे है, लेकिन हम इसका सम्मान करते हैं।’मदनी ने कहा कि शीर्ष अदालत के फैसले के खिलाफ पुर्निवचार याचिका दायर करने पर गुरुवार (14 नवंबर) को जमीयत की कार्य समिति की बैठक में निर्णय किया जाएगा। मौलाना मदनी ने कहा कि शरियत के लिहाज से बाबरी मस्जिद की हैसियत देश में मौजूद अन्य मस्जिदों से ज्यादा नहीं है।

लेकिन लड़ाई हक की थी, जो हमने 70 साल तक लड़ी है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर फैसला सुनाते हुए विवादित स्थल को हिंदूओं को दे दिया। इसके साथ मुसलमानों को कहीं और मस्जिद बनाने के लिए अलग से जमीन देने का भी फैसला सुनाया है। मदनी ने बताया बाबरी मस्जिद को आम मस्जिदों की तरह जमीयत प्रमुख ने कहा, ‘इस्लाम में शरीयत के मुताबिक सिर्फ तीन मस्जिदें अहमियत रखती हैं। उनमें मक्का की मस्जिद अल हराम (खाना ए काबा), मदीना की मस्जिद ए न­बवी और यरुशलम में स्थित बैत उल मुकद्दस।’ उन्होंने कहा, इनके बाद सारी मस्जिदें बराबर हैं और शरीयत के लिहाज से बाबरी मस्जिद की हैसियत भी देवबंद के किसी कोने में बनी मस्जिद से ज्यादा नहीं है।

जमीयत उलमा-ए-हिंद का इतिहास

जमीयत उलेमा हिन्द की स्थापना 1919 में हुई थी। यह भारत के मुस्लिम उलेमा (धर्मगुरुओं) का संगठन है। इस संगठन ने 1919 में खिलाफत आंदोलन को चलाने में अहम भूमिका निभाई थी और आजादी की लड़ाई में योगदान भी दिया था। बता दें कि भारत में मुसलमानों के सबसे बड़े संगठनों में इसकी गिनती होती है। फैसला सुबूतों के आधार पर नहीं आस्था के आधार पर हुआ- मदनीः मामले में मदनी का कहना था कि यह लड़ाई उसूल और हक की थी। इस पर उन्होंने कहा, ‘ऐसा कभी नहीं हुआ था कि किसी मस्जिद में जबरन मूर्तिया रखी गई हों और उसे तोड़ा हो गया हो। यह बात उच्चतम न्यायालय ने भी मानी है कि मस्जिद में मूर्तियां रखना और उसे तोड़ना गैर कानूनी और जुर्म है।

मदनी ने यह भी कहा ‘अदालत ने यह सारी बातें मानी हैं और फिर भी जमीन हिन्दू पक्षकारों को दे दी । इसलिए हम कहते हैं कि यह फैसला हमारी समझ से परे हैं। हमने सारे सबूत अदालत में पेश किए थे और उम्मीद की थी कि अदालत सुबूतों के आधार पर फैसला देगी न कि आस्था के आधार पर। मगर अदालत ने आस्था के आधार पर फैसला दिया।’

बाबरी मस्जिद के बदले अलग जमीन हमें दी जाती तो हम नहीं लेतेः न्यायालय द्वारा पांच एकड़ जमीन मुस्लिम पक्षकारों को देने पर उन्होंने कहा, ‘अगर हमें पांच-10 एकड़ जमीन चाहिए होती तो हम 70 साल तक मुदकमा नहीं लड़ते। मुसलमानों के पास जमीन की कमी नहीं है। हमने अपनी जमीनों पर मस्जिदें बनाई हैं और आगे भी बनाएंगे। जमीन सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को दी गई है। अगर हमें दी जाती तो हम लेने से इनकार कर देते।’

मुसलमानों ने मंदिर तोड़कर मस्जिद नहीं बनाई

न्यायलय इस सवाल पर कि मुस्लिम समुदाय इस फैसले को कैसे देखता है, मौलाना मदनी ने कहा, ‘यह बहुत अच्छी बात है कि फैसला खिलाफ आने के बावजूद मुसलमानों ने किसी तरह का कोई विरोध नहीं किया और अपने जज्बातों पर काबू रखा। उम्मीद है कि आगे भी ऐसा ही रहेगा।’ उन्होंने कहा, ‘देश का मुसलमान भारत की न्यायिक व्यवस्था में पूरा यकीन रखते हुए इस फैसले का पूरा एहतराम (सम्मान) करता है।’ प्रमुख मुस्लिम नेता ने कहा, ‘उच्चतम न्यायायलय ने माना है कि मुसलमानों ने बाबर के जमाने में मंदिर तोड़कर मस्जिद नहीं बनाई थी। यह हमारे लिए खुशी की बात है।’

मदनी ने जीत का जुलूस नहीं निकालने पर हिन्दू समुदाय की तारीफ की मामले में मदनी ने यह भी कहा, ‘फैसला हक में आने के बाद भी हिन्दू समुदाय ने जीत का जुलूस नहीं निकाला जो देश में अमन रखने के लिए अहम है और उन्होंने अपनी समझदारी का सुबूत दिया।’ गौरतलब है कि, एक सदी से भी पुराने बाबरी मस्जिद-राम जन्म भूमि मामले का उच्चतम न्यायालय ने बीते शनिवार को निपटारा कर दिया। विवादित भूमि हिन्दुओं को दे दी और मुसलमानों को कहीं और पांच एकड़ जमीन देने का निर्देश दिया है।

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By Khabar Desk

Khabar Adda News Desk

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