लेखक : अभिसार शर्मा
क्यों कुछ लिखा जाए ज़ायरा वसीम पर ! क्यों दलील दी जाए उनकी पोस्ट पर कि जो मुसलमान कला की दुनिया में काम करते है उनका ईमान क्या है या कैसा है ! क्यों उनकी दलीलों के आधार पर कला को लेकर कुरान और इस्लाम के नज़रियों पर बहस की जाए! क्यों नुसरत जहाँ और ज़ायरा वसीम के स्वतंत्रता के अधिकारों की तुलना की जाए!
बहुत सारी बाते हो सकती है इस मुद्दे पर..इस्लाम के इतिहास से शुरू करके मौजूदा समय तक इस्लाम के विद्वानों को कोट करके हम एक बड़ी बहस में उलझ सकते है कि इस्लाम क्या कहता है,क्या सही है क्या गलत,कौन जन्नत में जाएगा और कौन दोज़ख में..मुसलमानों ने सैकड़ों साल से कला की दुनिया में क्या क्या जोड़ा है..अमीर खुसरो और हज़रत निजामुद्दीन से लेकर पैगम्बर दाउद तक की कला क्या थी..मदीने का डफ क्या था..अज़ान के सुर कौन से है..किरत की कला क्या है..बहुत सारी बाते और बहस मुमकिन है..पर क्या फेस बुक और न्यूज़ चैनल के जबरिया माहौल में इस तरह की चर्चा सही ढंग से हो सकेगी..बिलकुल नहीं..आज सुबह एक न्यूज़ चैनल के रिपोर्टर साब ने फ़ोन किया..आप रिएक्शन दीजिये..बोलिए इस पर..मैंने कहा..मुझे बोलने की कोई ज़रूरत नहीं लगती इस पर..बेवजह की बहस होगी अगर बहस होगी.
और हम ये बहस करे भी क्यों ..हम ज़ायरा वसीम की एक पोस्ट को उस बहस की वजह क्यों बनाये जो न तो किसी नतीजे पर पहुचेगी..न कोई बदलाव लाएगी..न ही फाइनल तौर पर ये बता पाएगी कि हम में से किसका रिजर्वेशन जन्नत में है किसका दोज़ख में..ये बहस सिर्फ दो दिन की एक फ़ालतू बहस है जो एक छोटी उम्र लड़की की एक कच्ची पोस्ट से शुरू हुई है….देश में अब भी चालीस प्रतिशत कम पानी बरसा है..पुणे में कल पंद्रह लोग दीवार में दब कर मर गए..हमारे वैज्ञानिक चंद्रयान को जोडने में लगे है..दुनिया फेस बुक की इस पोस्ट के आगे अब भी चल रही है..और हम बहुत सारी बातो को सुनकर पढकर भी खामोश है.
तो न्यूज़ वालो को बोलने दीजिये..उनका काम है…ज़ायरा को लिखने दीजिये..या तो उनकी भड़ास है या नादानी या कोई मकसद है..जो भी है वो उनका है. ये भी तो मुमकिन है कि धमकी मिली हो कि छोड़ दो ये सब..और सार्वजनिक रूप से लिख कर इसकी निंदा करो..हमे कोई जानकारी नहीं कि उन्होंने इस बात को सार्वजनिक रूप से क्यों लिखा..यकीनन बहुत से लोगो को बुरा लगा है..मै भी उनकी बात से सहमत नहीं हूँ..लेकिन २३ साल की एक छोटी सी लड़की ने किन हालात में ये लिखा क्यों लिखा..इसकी जानकारी न होने की वजह से इसे उनकी मज़बूरी समझ कर इस पर चर्चा को बंद करने की ज़रूरत है.
हम सब मुस्लिम कलाकारों को पूरी उम्मीद रखनी चाहिए कि अमीर खुसरो साहब जन्नत में ही होंगे…हज़रात निजामुद्दीन औलिया जन्नत में भी क़व्वाली को उतने ही शौक से सुनते होंगे जैसे वो दिल्ली में सुना करते थे..रफ़ी साहब भी जन्नत की ठंडी हवाओ के बीच कही होंगे..नौशाद साहब..मीना जी..मधुबाला जी..बड़े गुलाम अली साब..के आसिफ..मेहँदी हसन साहब..फैज़..मजाज़..जोश..साहिर…मजरूह…मुझे उम्मीद है सब के सब जन्नत में होंगे.
न्यूज़ चैनल वालो के पास हो तो हो, मेरे पास इन सबके जन्नत में होने की कोई कन्फर्म खबर नहीं ..पर भरोसा ज़रूर है..उम्मीद ज़रूर है..इसलिए क्योंकि ये सब अच्छे इंसान थे नेक लोग थे..जिस खुदा पर मेरा भरोसा है वो इंसानियत और सच्चाई को देखकर फैसला करता है..किसी और का खुदा कुछ और देखकर फैसले करता हो तो मुझे उसकी कोई खबर नहीं..और उसे जानने का दिल भी नहीं..मेरा ख्याल है कि कला को समर्पित हर मुसलमान पर भी तब तक खुदा की मेहर हो सकती है जब तक वो इंसानियत सच्चाई और अच्छाई पर टिका है…उसकी जन्नत का रिजर्वेशन भी शायद कैंसिल न हो…इसलिए अपने काम पर जमे रहिये..सच्चाई और अच्छाई पर टिके रहिये..खुदा को थामे रहिये..और खुदा के फैसलों को फेस बुक पोस्टों से जज मत कीजिये.
जब तक न्यूज़ चैनल वाले दोज़ख में खडे होकर लाइव न शुरू कर दे की ये देखिये..गौर से देखिये…सारे मुसलमान कलाकार दोज़ख की आग में जल रहे हैं..मैं तो नहीं मानने वाला की जिस खुदा ने दुनिया की हर कला को जन्म दिया…जिसने मेरे दिल दिमाग सोच और हाथो में कला दी…जिस खुदा ने मुझे कलाकार बनाया…जिस खुदा ने कला के सफ़र में हर कदम साथ दिया..वो मेरा खुदा नाराज़ होगा..मेरा खुदा तो मेरे साथ है….ज़ायरा की ज़ायरा जाने!