भारत में वर्तमान दौर दलाल मीडिया और बिकाउ पत्रकारों का है. भारतीय राजनीति का जितना स्तर नहीं गिरा, उससे कहीं ज्यादा पत्रकारिता का गिर गया है.
रिश्वतखोरी के आरोप में तिहाड़ जेल से पुलिस के डंडे खाकर बेल पर बाहर निकले सड़क छाप पत्रकार देश का डीएनए खंगालते हैं और राष्ट्रवाद पर प्रवचन बांटते हैं. हैरानी की बात तो यह है इन सभी दो कौड़ी के पत्रकारों को सत्ता का शह हासिल है.
नरेंद्र मोदी सरकार ने हमेशा की तरह तालिबान स्टाइल में आदेश जारी करते हुए कहा है कि निष्पक्ष पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी के मास्टर स्ट्रोक के जितने भी एपिसोड यूट्यूब पर मौजूद हैं, उन्हें तत्काल हटाया जाए. मोदी सरकार को डर है कि मास्टर स्ट्रोक के पुराने एपिसोड जब तक यूट्यूब पर मौजूद हैं, लोग सरकार से सवाल पूछने की हिमाकत करते रहेंगे.
बताते चलें कि मास्टर स्ट्रोक कार्यक्रम एबीपी न्यूज पर हर रात आता था. इसमें एंकर पुण्य प्रसून दूसरे न्यूज चैनलों के हिंदू, मुस्लिम, मंदिर मस्जिद और गाय गोबर की जगह देश के किसानों की समस्या, महंगाई, बेरोजगारी आदि पर रिपोर्ट दिखाते थें. पुण्य प्रसून अपने कार्यक्रम में कतार में खड़े अंतिम व्यक्ति की बात करते थें.
राशन, किरासन, पेंशन जैसी मूलभूत चीजों पर फोकस करते थें.
ये केंद्र सरकार को नागवार गुजर रही थी. वो चाहते थें कि मीडिया सिर्फ हिंदू मुस्लिम जैसे विषयां पर ही खबरें दिखाए या बहस कराए जबकि वाजपेयी इन सब से कोसों दूर थें.
वर्तमान भारतीय जनता पार्टी की नरेंद्र मोदी सरकार ने पत्रकारों को टुकड़े पर पलने वाला जानवर बनाकर छोड़ दिया है. जो उनकी जूठी पत्तल चाटता है, उसे वाई कैटेगरी की सुरक्षा दी जाती है और जो पत्रकार देश के किसानों, नौजवानों, बुजुर्गों का सवाल उठाता है, उसे बर्बाद करने की हर कोशिशें पीएमओ स्तर से होती है. भाजपा अध्यक्ष शाह तो इसके मास्टर माइंड माने जाते हैं.
नरेंद्र मोदी के लिए सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि
तुमसे पहले भी जो यहां तख्तनशीं था,
उसे भी अपने खुदा होने का इतना ही यकीं था.
मोदीजी, जरा सोचिए, सत्ता आज है कल नहीं रहेगी