Tue. Nov 19th, 2024

नई दिल्ली :-
लेखक, ज़ाहिद युसुफ़ज़ई
दिन निकलने से पहले ही दिन की शुरुआत हो जाती है , हर तरफ भागम दौड़ी मची होती है । लंबी लंबी बसों और कारों में ऊंघते हुए लोग हर तरफ देखे जा सकते हैं , ऐसे मालूम पड़ता है जैसे ज़िन्दगी से रेस लगी हो ।सबके सब एक जैसी वर्दी और जूतों में ऐसे दिखते हैं जैसे वो किसी देश की सेना के जवान हों और किसी नए मिशन पे निकल रहे हों । दरअसल हर रोज़ वो नई जंग पे ही जाते हैं और जीत भी उन्ही की होती है । सबके ज़ेहनो में बस एक ही तस्वीर चलती होती है और वो तस्वीर तपती हुई रेतीली बियाबान ज़मीन के टुकड़े को जगमगाते और चमचमाते महलों में तब्दील करना , बड़े बड़े तेल और गैस के प्लांटों (कारखानों) का निर्माण करना ।

जुनून ऐसा की 50 डिग्री से अधिक तापमान भी उनके हौसले के आगे ठंढ़े पड़ जाएं , रूह तक को गर्मा देने वाली गरम रेतीली हवाएं भी अपना रुख़ बदल लें ।और हां ये किसी औए ग्रह औए प्रांत के लोग नही होते ,ये हमारे जैसे दिखने वाले हमारी ही मिट्टी के प्राणी हैं । अब सोंचने वाली बात है के आख़िर इनके अंदर इतनी ताक़त कहाँ से आती है , कहाँ से मिलती है इनके इरादों को ऐसी मज़बूती ??
मक़सद अगर सिर्फ दो वक़्त की रोटी हो तो कौन आए परदेस क्यूँ करे कोई अपनो की जुदाई का दर्द बर्दाश्त ,मगर यहाँ तो इंसान ज़िंदगी की बोझ तले दबा है । इक्कीसवीं सदी वो सदी जहाँ इंसानो को मिट्टी के बदले भी अच्छी ख़ासी रक़म चुकानी पड़ रही है ,ऐसे में बच्चों की पढ़ाई और बूढ़े माँ बाप की दवाई का ख़र्चा उठा पाना बेहद मुश्किल काम है । पूरे परिवार के दो वक्त की रोटी का अगर इंतज़ाम हो जाए तो भी चिंता कम नही होती क्योंकि घरों में बैठी बहन और बेटियां भी तो हैं जिनकी डोली उठनी होती है । अब जब इंसान के आगे ज़रूरत का इतना बड़ा पहाड़ खड़ा हो तो इंसान का मक़सद सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाना हो जाता है ।

अब इस पूरी कहानी में हमारा भी किरदार देखिए , क्यूँ हम ख़ुद को खुशनसीब इंसान समझते हैं । हर सुबह अपने मज़दूर भाइयों के साथ हमारा भी काम शुरू हो जाता है । हमारा मक़सद उनकी सेफ्टी,सुरक्षा और सेहत । वतन से हज़्ज़ारों किलोमीटर दूर न तो उनका कोई अपना होता है और नही उनका कोई रिश्तेदार ।
ऐसे में हम सेफ्टी वाले उन्हें हर वक़्त ये याद दिलाते रहते हैं कि उनकी पीछे कितनी ज़िम्मेदारियाँ हैं , कितने लोग घर पर उनका इंतजार कर रहे हैं , उनका सुरक्षित और सलामत रहना कितना अहम है । आधुनिक मशीनों के इस युग मे उनके कामों में क्या ख़तरे हैं , उन्हें कैसे बचना है उन खतरों से । क्या पहनना है ,कौन से टूल्स और औज़ार के इस्तेमाल से उनकी ख़तरों से हिफाज़त होगी।
उनके लिए आराम करने की जगह मुहय्या करवाना , बेहतर खाने और पानी की क़्वालिटी का ख्याल रखने के साथ साथ वक़्त वक़्त पर उनके स्वस्थ की जांच और दवाईयों का इंतज़ाम करवाना भी हमारे ही ज़िम्मे है ।
हमें फ़ख़्र है अपने प्रोफेशन पर की हमारा काम भी एक सेवा है
यह लेख ज़ाहिद युसुफ़ज़ई द्वारा लिखा गया है, यह इनके व्यक्तिगत विचार है।

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By Khabar Desk

Khabar Adda News Desk

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